पाठ 13
काश! मैं भी
काश! मैं भी सीमा पर जाकर,
दुश्मन से लड़ पातीl
काश! मैं भी जो लड़ते-लड़ते,
अमर शहीद हो जातीl
काश! मैं भी तोप बंदूको,
के हथियार सजातीl
काश! मैं भी अमर होकर,
नया इतिहास रचातीl
काश!चांदनी की उन रातों,
को अंधियारी कर पातीl
काश!तोप के मुंह से निकला,
मैं गोला बन जातीl
काश! कारगिल की घाटी का,
एक पत्थर बन जातीl
अमर शहीदों को सलाम कर,
जीवन सफल बनातीl
काश! मैं भी
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर
एक या दो वाक्यों में लिखें:-
( क)
कवित्री सीमा पर जाकर किससे युद्ध करना?
1. उत्तर: कवित्री सीमा पार जाकर दुश्मनों से युद्ध करना चाहती हैl
(ख)
वह कैसे शहीद होना चाहती है?
2. उत्तर: वह दुश्मनों से लड़ते लड़ते शहीद होना चाहती हैl
( ग) वह अपने हाथों में हथियार से जाना चाहती
है?
3. उत्तर: अपने हाथों में बंदूकों और तोपों को सजाना चाहती हैंl
( घ) वह किस गाड़ी का पत्थर बनाना चाहती है?
4. उत्तर: वह कारगिल घाटी का पत्थर बनना चाहती हैl
( ड़)
वह अपना जीवन कैसे सफल बनाना चाहती है?
5. उत्तर: वे अमर शहीदों को सलाम करके अपना जीवन सफल बनाना चाहती हैl
4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर
चार या पांच वाक्य में लिखें:-
( क)
चांदनी की उन रातों को अंधियारी कर पाती
कवित्री क्या कहना चाहती है?
1. उत्तर: इस पंक्ति में कवित्री यह कहना चाहती है कि काश वह उन चांदनी रातों में दुश्मनों का नाश कर सकतीl वह उनके नाश से इन चांदनी रातों को अंधियारी कर पाती अर्थात दुश्मनों को मार कर वह उन दुश्मनों की चांदनी रातों में अंधेरा फैला सकतीl
( ख) वह कारगिल की घाटी का ही पत्थर क्यों बनना चाहती है?
2. उत्तर: वह कारगिल की घाटी का पत्थर इसीलिए बनना चाहती है क्योंकि देश के लिए अपने मन में अथाह प्रेम और वे उनके लिए कूद कर गुजरने की इच्छा रखती हैl
( ग)
वह अपने जीवन की सफलता किस में मानती
है?
3. उत्तर: वे अपने जीवन की सफलता अमर शहीदों को सलाम करने में मानती है